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लेखनी प्रतियोगिता -04-Feb-2023 बद्दुआ ( कैंसर की आखिरी स्टेज )



शीर्षक = बद्दुआ ( कैंसर की आखिरी स्टेज )



सुबह के पांच बज रहे थे, बेड के पास रखे स्टूल पर रखा फ़ोन बजने लगता है। एक बार तो बज कर बंद हो जाता है, लेकिन दूसरी बार बजते ही, पास लेटी शिफा ने अपने ऊपर से चादर हटाई और पास में लेटे अपने शोहर को आवाज़ देते हुए कहा "आपका फ़ोन बज रहा है "


"कौन है? इस समय कौन फ़ोन कर रहा है?" शावेज ने कहा चिढ़ते हुए


"नही मालूम, एक बार और भी बजा था, लेकिन जब तक मैं उठी बंद हो गया था " शिफा ने कहा

इससे पहले वो कुछ और कहती फ़ोन दोबारा बंद हो गया,

"चलो सो जाओ, मैं भी सो रहा हूँ " शावेज ने कहा और  मुँह पर से हटाई चादर को वापस अपने ऊपर ढक लिया

लेकिन उससे पहले ही मोबाइल तीसरी बार बज उठा

"उफ्फ्फ, कौन है? कौन इस समय फ़ोन कर रहा है, लाओ उठा कर दो, अभी बताता हूँ, जो भी फ़ोन कर रहा है " शावेज ने अपने ऊपर की चादर हटाई और उठ कर बैठ गया


"ये लीजिये, किसी अनजान का है, नाम दिख नही रहा है, " शिफा ने फ़ोन उठा कर शावेज को देते हुए कहा


शावेज फ़ोन उठा कर, भारी आवाज़ में बोला " हेलो, जी कौन?


"म,, म,, माफ करना,, इस समय फ़ोन किया, आप मिस्टर शावेज बात कर रहे है " फ़ोन पर मौजूद एक लड़की ने कहा

"जी, मैं ही हूँ, पर आप कौन? मेरा नंबर कहा मिला और इस समय फ़ोन करने की वजह क्या है? " शावेज ने पूछा

"जी मेरा नाम, मारथा है। मैं एक अस्पताल में नर्स हूँ और इस समय अपनी रात की शिफ्ट कर रही थी " उस मारथा नामी लड़की ने कहा और वो कुछ और कहती उससे पहले ही शावेज बोल पड़ा

अच्छा, लेकिन मैंने तो कभी इस नाम को ना ही सुना और न ही कभी आपसे मिला, फिर इस समय मुझे फ़ोन करने की क्या वजह है


"मैं जानती हूँ, आपका मुझसे और मेरे नाम से कोई लेना देना नही है, लेकिन कोई है, जिसे आपकी ज़रूरत है " मारथा ने कहा


"कौन? किसे मेरी ज़रूरत है " शावेज ने पूछा


पास बैठी शिफा ने उसकी तरफ देखा, वो भी सूरत - ए - हाल जानना चाहती थी, पर कुछ बोल नही सकी, दरअसल उन दोनों का रिश्ता आम मिया बीवी जैसा नही था, उसे जबरदस्ती शावेज की जिंदगी में शामिल होना पड़ा था, उसकी माँ की ख्वाहिश के चलते



"लेकिन एक नाम है, जिसे आपने सुना भी होगा और उस नाम से जुड़े शख्स के साथ आपने अपना समय भी गुज़ारा है, मैं मरयम की बात कर रही हूँ, आप जानते है उसे, " मारथा कुछ कहती उससे पहले ही शावेज बोल पड़ा " मरयम! मरयम से तुम्हारा क्या लेना देना? "


"मेरा तो कुछ लेना देना नही है, मैं तो बस इंसानियत का फर्ज़ निभा रही थी, जिंदगी के आख़री पायदान पर ख़डी उस लड़की मरयम की आख़री इच्छा थी, कि आपको फ़ोन करके बता दू कि वो मर रही है, उसके पास बस चंद सांसे बची है, जिनमे वो आपसे मिलना चाहती है, मैं सुबह फ़ोन कर सकती थी लेकिन नही मालूम कैंसर की आख़री स्टेज पर पहुंची वो लड़की सुबह तक बच पी पायेगी या नही, इसलिए न चाहते हुए भी मैंने अपनी शिफ्ट खत्म करने से पहले आपको इत्तेला करना सही समझा,

मैं नही जानती आपका और उसका क्या रिश्ता रहा था, बस इतना जानती हूँ वो तकलीफ में है, वो कुछ दिन पहले ही यहाँ भर्ती हुयी है, पूछने पर उसने बताया था की उसका कोई नही है, लेकिन आज रात उसने मुझे ये नंबर देकर आपको बताने का कहा, मैंने अपना काम कर दिया है, बाकी आप जाने, लेकिन बस इतना कहूँगी कि ना चाहते हुए भी उससे एक बार मिलने जरूर आ जाना, वो जिंदगी और मौत की देहलीज पर खड़ी है, जहाँ उसकी एक एक सास उसे जिंदगी से मौत की तरफ खींच कर ले जा रही है, कब कौन सी सास उसकी आखिरी बन जाए कोई नही कह सकता, उसे देख कर लगता है मानो किसी के दुखे दिल से निकली बद्दुआ ने उसका ये हाल किया है, मैं फ़ोन रखती हूँ, मेरी शिफ्ट खत्म होने को है, नही मालूम अगली शिफ्ट में उससे मुलाक़ात होगी की नही, आपका मन करे तो संजीवनी हॉस्पिटल आ जाना, यहां किसी से भी पूछेंगे तो बता देगा की वो कैंसर से पीड़ित लड़की कोनसे वार्ड में अपनी आखिरी सांसे गिन रही है, ये कहकर मारथा ने फ़ोन रख दिया


मारथा ने अपने सामने लेटी मरयम की तरफ देखा जो की रो रही थी, और हाथ जोड़े उसका शुक्रिया अदा कर रही थी, मारथा भी चहरे पर हल्की सी मुस्कान सजा कर उससे दोबारा मिलने की उम्मीद लेकर वहाँ से जाने लगी


तब ही बिस्तर पर लेटी मरयम ने पूछा " वो आएगा न,क्या कहा उसने? "


"मैं तुम्हे कोई झूटी तसल्ली नही देना चाहती हूँ, मेरी बच्ची मेरा जो काम था वो कर दिया, बाकी जीसस जाने कि वो आएगा की नही, अच्छी उम्मीद रखो देखना वो आएगा, कोई कितना ही पत्थर दिल क्यूँ न हो इस तरह मौत के द्वार पर खडे इंसान से मुँह नही मोड़ सकता है " मारथा ने कहा और वहाँ से चली गयी, और वहाँ दूसरी नर्स आ गयी



"मरयम!  ये तो वही है न, जो आपको,,,," शिफा ने कहा और कहते कहते रुक गयी, और बात को बदलते हुए बोली " क्या हुआ है? क्या बात है? आप के चहरे का रंग क्यूँ उतर गया है? "


"नही,, नही,,, वो मर रही है,, ऐसा नही हो सकता है,,, वो कैसे,, अम्मी अम्मी,,, वो मर रही है,,, मुझे जाना होगा,,, कहा है आप,, वो मर रही है "शावेज ने अपने ऊपर से चादर हटाई और दीवानो की तरह बिस्तर से उतर कर बाहर अपनी अम्मी के कमरे की तरफ जाने लगा


"क्या बात है? कौन मर रही है? कुछ बताइये,, इस तरह न भागिए,, आप गिर जाएंगे,, अम्मी अम्मी कहा है आप,,, देखिये इन्हे क्या हुआ है?" शिफा दौड़ती हुयी शावेज के पीछे आयी


शावेज पागलों की तरह हाफ्ता हुआ, पास में ही बने अपनी माँ के कमरे में गया और बोला " अम्मी,,, अम्मी,, वो मर रही है,,, वो जा रही है हम सब को छोड़ कर "


"क्या हुआ? कोई बुरा सपना देखा क्या? कौन मर रही है?" शावेज की अम्मी फातिमा जी ने कहा, जो की उस समय जाग रही थी नमाज के लिए


"अम्मी,, मरयम,,, मरयम मर रही है " शावेज ने कहा


"मरयम! ये नाम तुम्हारी जुबान पर कहा से आया, उसने जो जख्म हम सब को दिए थे, जिनकी भरपाई आज भी नही हो पायी है, आज इतने सालों बाद उसका नाम तुम्हारी ज़ुबान पर कहा से आया " फातिमा जी ने कहा थोड़ा गुस्से से


"अम्मी, मरयम मर रही है," शावेज ने कहा


"मरती है तो मरे, हमारे लिए और अपने घर वालों के लिए तो वो बहुत पहले ही मर चुकी थी " फातिमा जी ने कहा


"न, कहे अम्मी इस तरह न कहे, इतनी सख्त दिल न बने, आज वो जिस हालत में है कही न कही उसे आपकी ही बद्दुआ लगी है, वो अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रही है, उसे कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज पर, उसकी नर्स ने बताया " शावेज ने कहा


"मेरी बद्दुआ नही, बल्कि उसे उसके गुनाहो की सजा मिली है, भूल गया क्या 8 साल पहले जो जख्म वो तुझे और हम सब को देकर गयी थी, उस जख्म को भरने में कितना समय लगा था तुझे, कोई ज़बरदस्ती तो नही की थी मैंने उससे, बस यही चाहती थी की अपनी सहेली को अपनी समधन बना कर इस रिश्ते को और मजबूत करू


तू भी तो उसे पसंद करता था, जब जब वो घर आती थी तो उसे देख तेरा चेहरा कितना खिल जाता था, मैंने कोई बुरा काम तो नही किया था उसका हाथ तेरे लिए मांग कर, उसकी माँ भी तो कितना खुश थी भला इतना अच्छा लड़का उन्हें अपनी बेटी के लिए कहा मिलता, मुझे भी मरयम पसंद थी लेकिन नही जानती थी की उस मासूम सी दिखने वाली लड़की के पीछे एक बागी लड़की छिपी है, जिसे न तो अपना ख्याल था और न ही किसी और की इज़्ज़त का और दरवाज़े पर खड़ी बारात की इज़्ज़त का जनाजा निकाल कर वो अपने आशिक के साथ भाग निकली, अपने माँ बाप का सर शर्मिंदगी से नीचा कर


मुझे उसकी बगावत या मोहब्बत से कोई लेना देना नही, अगर उसे तुझसे मोहब्बत नही थी, ये रिश्ता नही करना चाहती थी, तो मुझे बता देती इस तरह मेरे  और मेरे के अरमानो का जनाजा तो न निकालती " फातिमा जी ने कहा


"बस अम्मी, आगे और कुछ मत कहना,क्या पता उसकी कोई मजबूरी रही हो, जो वो आपको या मुझे नही बता सकी हो, और वैसे भी मैं उसे पसंद करता था जरूरी तो नही जिसे हम पसंद करे वो भी हमें पसंद करता हो, क्या पता उसने बताना चाहा हो हमने ही कभी उसे सुनना न चाहा हो, अम्मी गड़े मुर्दे मत उखाड़िये, जो होना था वो हो गया, वो बुला रही है, उसके पास ज्यादा समय नही है, मुझे उसके पास जाना है " शावेज ने कहा


"नही, बिलकुल नही मरती है तो मर जाए, और तू भूल रहा है शायद तेरी अब शादी हो गयी है, मरयम का चैप्टर तेरी जिंदगी से ख़त्म हो चुका है, तेरा नसीब अब मरयम के साथ नही शिफा के साथ जुड़ चुका है, उसी ने तुझे संभाला है उसके जाने के बाद, और अब फिर वो तेरी जिंदगी बर्बाद करने आ गयी है, मैं ही पागल थी जो उसे तेरी जिंदगी में लायी थी,तू उससे मिलने जाएगा तो याद रखना इस घर के दरवाज़े तेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे, अब फैसला तुझे करना है कि तू उस बेवफा के लिए हमें छोड़ेगा या फिर उसके लिए हमें छोड़ेगा " फातिमा जी ने कहा


"अम्मी, उसके पास ज्यादा समय नही है, वो जिंदगी की जंग हार चुकी है, वो मुझसे मिलना चाहती है, मरने वाले की आखिरी ख्वाहिश तो पूरी की ही जाती है," शावेज ने कहा


"अम्मी,, जाने दीजिये इन्हे,, एक आखिरी बार मिलने दीजिये मुझे बुरा नही लगेगा, " शिफा ने कहा


"पर बहु, वो लड़की कोई और नही वही लड़की है, जिसकी वजह से आज तक तुझे इसने नज़र उठा कर भी नही देखा है" फातिमा जी ने कहा


"मुझे बुरा नही लगेगा, लेकिन हाँ मेरी एक गुज़ारिश है, मरयम से कहना की मेरा शोहर मुझे लोटा दे, मुझसे उसकी बेरुखी बर्दाश्त नही होती है, एक कमरे में रहकर दो अजनबियों की तरह रहना मुझे अब अच्छा नही लगता, बस इतनी सी अर्ज़ी है मेरी उससे " शिफा ने कहा, शावेज की तरफ देखते हुए


शावेज की निगाहेँ शर्मिंदगी से झुक सी गयी थी

"जा एक आखिरी बार मिल आ उससे, उससे कहना माफ किया मैंने उसे, लेकिन रोज़ - ए - मेहशर मैं उससे हिसाब ज़रूर लूंगी, कि आखिर उसने हम सब को इतने साल तकलीफ क्यूँ दी, क्यूँ एक माँ के दिल कि हाय ली? क्यूँ उसके बेटे को छोड़ किसी और के साथ भाग गयी थी " फातिमा जी ने कहा


शावेज की आँखों में आंसू थे, उसने पहले अपनी माँ की तरफ देखा और फिर सामने ख़डी शिफा का शुक्रिया अदा किया आँखों ही आँखों में और तुरंत वहाँ से संजीवनी अस्पताल की तरफ दौड़ पड़ा


"तूने बहुत बड़ी भूल की है, बहु तुझे यकीन है की वो उससे मिलकर आने के बाद तुझे अपना लेगा " फातिमा जी ने कहा


"मैं नही जानती, बस इतना जानती हूँ की मरने वाले की आखिरी ख्वाहिश पूरी करना फर्ज़ है, और जब मरने वाला वो इंसान हो जिससे कभी आपको प्यार था तब तो उससे मिलना लाजमी है, अगर मेरा प्यार सच्चा होगा तो शावेज अपने दिल से मरयम की यादें बाहर निकाल देंगा, क्यूंकि जो सवाल आपके मन में है, उससे कही ज्यादा सवाल शावेज के पास होंगे जिनके जवाब सिर्फ मरयम ही दे सकती है, आप परेशान न हो सब ठीक हो जाएगा " शिफा ने कहा


सुबह हो चुकी थी, शावेज भागते, दौड़ते आखिर कार अस्पताल पहुंच ही गया, और जैसा की नर्स ने बताया था की वहाँ मरयम को हर कोई जानता है, इसलिए पूछने पर उसे पता चला की वो 301 कमरे में है, जहाँ वो आख़री सांसे ले रही है


शावेज दौड़ता हुआ उस कमरे की तरफ गया, बाहर से जब उसने मरयम को देखा तो उसके आंसू निकल आये, मरयम जो की शावेज का ही इंतज़ार कर रही थी, उसे दरवाज़े पर खड़ा देख रोने लगी, उसे यकीन था की वो ज़रूर आएगा


शावेज उसके पास आया, उसके लब सिल चुके थे, वो पूछना तो बहुत कुछ चाहता था पर पूछ नही सका, आखिर कार मरयम ने अपना ऑक्सीजन मास्क हटाया और बोली " देखो! मुझे तुम्हारी बद्दुआ लग गयी, मैं मर रही हूँ, मुझे माफ करदो शावेज, मुझे नही पता था मेरी नादानी तुम्हे और तुम्हारे घर वालों को मुश्किल में डाल देगी


मैं भागना नही चाहती थी, लेकिन अम्मी अब्बू ने बिना मेरी मर्ज़ी जाने हाँ कह दी थी, फातिमा खाला के सामने भी मैं मजबूर थी, उन्हें भी नही बता सकी की मैं किसी और से प्यार करती हूँ, उस ऐसे इंसान से जो मुझे कुछ साल बाद ही दरदर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ गया था


मैं तुम सब की गुनेहगार हूँ, मैंने नादानी में इतना बड़ा कदम उठा लिया था जिसका अंदाजा मुझे जब हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी, मैंने अनजाने में कितनो के दिल दुखा दिए थे, मुझे पता ही नही चला जिसमे से एक दिल तुम्हारा भी था,जिसमे मेरे लिए प्यार था और शायद आज भी है इसलिए तो देखो तुम चले आये एक आखिरी बार मुझसे मिलने, शावेज मुझे माफ करदो, देखो मेरी सांसे तुम्हारी माफ़ी की मोहताज है, तुम्हारी माफ़ी मिलेगी तब ही मेरी रूह मेरे जिस्म से आजाद हो पायेगी, मैं तकलीफ में हूँ मुझे आजाद कर दो, "


शावेज की आँखों में आंसू थे और वो बोला " मैंने तो तुम्हे कब का माफ कर दिया था, बस कुछ सवाल थे जिनके जवाब मुझे जानना थे और उनमे पहला ये था कि आखिर तुमने मुझे क्यूँ छोड़ दिया था, अब जैसा की तुमने बताया की तुम किसी और से प्यार करती थी और प्यार पर किसी का बस नही चलता है ये कब और किससे हो जाए कोई नही जानता, जैसे की मुझे तुमसे मोहब्बत थी, तुम्हे किसी और से और मेरी बीवी को मुझसे, ये मोहब्बत बड़ी अजीब होती है हमेशा गलत इंसान से ही होती है,मुझे तुमसे बस इतना गिला था की तुमने मुझे बताया क्यूँ नही, तुम एक बार मुझसे आकर कह देती तो मैं खुद मना कर देता, उस शादी से यूं मेरी मोहब्बत का जनाजा तो न निकलता उस दिन तुम्हारे घर पर पता चलने पर की तुम किसी और के साथ भाग गयी हो, कितना रोया था में मुझे खुद नही मालूम "


शावेज की बात सुन मरयम भी रोने लगी और उसकी सांस उखड़ने लगी थी, और वो बोली " मेरे जाने का समय आ गया है, मैं बस इतना कहूँगी की मेरी यादों को अपने दिल और दिमाग़ से निकाल फेंको और जो तुमसे प्यार करती है उसके प्यार को समझो उसे एहमियत दो, ये दुनिया और ये जिंदगी बहुत छोटी है, कब कोनसा पल कोनसी सास आखिरी हो कोई नही जानता, जाओ लोट जाओ अपनी बीवी के पास और मुझे आज़ाद करदो अपनी सोचो से, मरयम ने कहा और खामोश हो गयी उसकी रूह निकल गयी थी


शावेज ने उसे हिलाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा न हुआ, वो जा चुकी थी

शावेज की आँखों से आंसू निकल कर मरयम के गालों पर गिर रहे थे


अस्पताल की कार्यवाही कर वो उसे उसके घर वालों को दे आया, जिनके लिए वो जीते जी मर गयी थी अब बस उसे मिट्टी देना बाकी थी



उसे घर वापस आता देखा और खुद को गले लगाता देख शिफा को अच्छा लगा, आज पहली बार शादी के इतने साल बाद शावेज ने उसे अपना समझ कर उसके कांधे पर सर रखा था


प्रतियोगिता हेतु 

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6 Comments

अदिति झा

06-Feb-2023 12:18 PM

Nice 👌

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शानदार प्रस्तुति 👌

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Varsha_Upadhyay

05-Feb-2023 06:45 PM

Nice 👍🏼

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